सन 1938 में सुभाष को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया । इसी दौरान यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए । सुभाष चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर अखण्ड भारत की आजादी की लडाई को ओर तेज किया जाये , यह भारत की आजादी के लिए स्वर्णिम अवसर हैं । कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुये उन्होंने इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया । सुभाष गांधी जी के तथाकथित अहिंसा आन्दोलन के द्वारा भारत को आजादी दिलाने की खोखली नीति पर कभी विश्वास नहीं करते थे । इसी कारण गांधी - नेहरू की कांग्रेस ने द्वेषवश कभी नेताजी सुभाष का साथ नहीं दिया ।
भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण पहलू द्वितीय विश्वयुद्ध भी हैं । इस युद्ध में ब्रिटेन सहित पूरा यूरोप बर्बाद हो गया था । अब उनमें भारत की आजादी के आन्दोलन को झेलने की शक्ति नहीं बची थी । अगर अंग्रेज द्वितीय विश्वयुद्ध में इतनी बुरी तरह बर्बाद नहीं होते और भारत में सशस्त्र क्रान्तिकारी न होते तो शायद गांधी जी का स्वतन्त्रता आन्दोलन अभी तक चल रहा होता ।
1939 में जब कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुनने का समय आया तो सुभाष चाहते थे कि कोई ऐसा व्यक्ति अध्यक्ष बनाया जाये , जो अखण्ड भारत की पूर्ण आजादी के विषय पर किसी के सामने न झुके । ऐसा कोई दूसरा व्यक्ति सामने न आने पर सुभाष ने स्वयं अध्यक्ष पद पर बने रहना चाहा । लेकिन गांधी जी अपने सामने किसी प्रतिद्वंदी को स्वीकार न कर पाते थे और वह उन्हें अपने रास्ते से हटाने का पूर्ण प्रयास किया करते थे , वह प्रतिदंदी नेताजी सुभाष रहे हो चाहे भगतसिंह । सुभाष कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहते हुए गांधी जी की नीतियों पर नहीं चले , अतः गांधी व उनके साथी सुभाष को अपने रास्ते से हटाना चाहते थे । गांधी ने सुभाष के विरूद्ध पट्टाभी सीतारमैय्या को चुनाव लडाया । लेकिन उस समय गांधी से कही ज्यादा लोग सुभाष को चाहते थे । कवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को पत्र लिखकर सुभाष को ही अध्यक्ष बनाने का निवेदन किया । प्रफुल्ल चन्द्र रॉय और मेघनाद सहा जैसे वैज्ञानिक भी सुभाष को फिर से अध्यक्ष देखना चाहते थे । लेकिन गांधी जी ने इस विषय पर किसी की नहीं मानी । कोई समझौता न हो पाने के कारण कई वर्षो बाद पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ ।
गांधी जी के प्रबल विरोध के बावजूद सुभाष चन्द्र बोस भारी बहुमत से चुनाव जीतकर दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिये गये । गांधी जी को दुःख हुआ , उन्होंने कहा कि ' सुभाष की जीत गांधी की हार हैं । ' सत्य के प्रयोग करने वाले गांधी जी शान्त नहीं रहें , बल्कि उन्होंने नेताजी सुभाष के प्रति विद्वेष का व्यवहार अपनाया । उनके कार्यो में बाधाएँ डालते रहे और अन्त में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र लिखवाकर ही दम लिया ।
जिस समय आजाद हिन्द फौज नेताजी सुभाष के नेतृत्व में जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिस सेना के विरूद्ध मोर्चे पर मोर्चा मारती हुई भारत की भूमि की ओर बढती आ रही थी , उस समय गांधी जी ने , जिनके हाथ में करोडों भारतीयों की नब्ज थी और जिससे आजाद हिन्द फौज को काफी मदद मिल सकती थी , ऐसा कुछ नहीं किया । बल्कि 24 अप्रैल 1945 को जब भारत आजाद हिन्द फौज और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रयासों से आजादी के करीब था , तब गांधी जी के सर्वाधिक प्रिय जवाहर लाल नेहरू ने गुवाहाटी की एक सभा में कहा कि - ' यदि सुभाष चन्द्र बोस ने जापान की सहायता से भारत पर आक्रमण किया तो मैं स्वयं तलवार उठाकर सुभाष से लडकर रोकने जाऊँगा । ' नेहरू का यह व्यवहार महात्मा नाथूराम गोडसे के उस कथन की याद दिलाते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि ' गांधी व उसके साथी सुभाष को नष्ट करना चाहते थे । '
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का स्वप्न था स्वाधीन , शक्तिशाली और समृद्ध भारत । वे भारत को अखण्ड राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे । लेकिन गांधी - नेहरू की विभाजनकारी साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की नीतियों ने भारत का विभाजन करते उनके स्वप्न की हत्या कर दी । यदि कांग्रेस नेताजी सुभाष की चेतावनी पर समय रहते ध्यान देती और गांधीवाद के पाखण्ड में ना फंसी होती तो भारत विभाजन न होता तथा मानवता के माथे पर भयानक रक्त - पात का कलंक लगने से बच जाता । नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का मानना था कि " आजादी का मतलब सिर्फ राजनीतिक गुलामी से छुटकारा ही नहीं हैं । देश की सम्पत्ति का समान बटवारा , जात - पात के बंधनों और सामाजिक ऊँच - नीच से मुक्ति तथा साम्प्रदायिकता और धर्मांधता को जड से उखाड फेंकना ही सच्ची आजादी होगी । "
जय हिन्द
- विश्वजीत सिंह 'अनंत'
सत्य की एक छोटी सी चिंगारी असत्य के बडे से बडे पहाड को नष्ट कर देती हैँ । यहाँ सत्य से सम्बन्धित पोस्टे रखी जायेगी , अतः यह स्थान होगा सत्य संवाद के लिए । यदि आपके हृदय मेँ सत्य की अग्नि प्रज्वलित हो रही हैँ, और आप सत्य से निर्भीकतापूर्वक संवाद करने की शक्ति रखते हैँ तो फॉलोवर ( समर्थक ) बनकर मेरा उत्साहवर्द्धन एवं मार्गदर्शन करें , आपका हार्दिक स्वागत हैं ।
सोमवार, 11 अप्रैल 2011
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रति गांधी जी का द्वेषपूर्ण व्यवहार
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बहुत ही सुन्दर विवेचन !
जवाब देंहटाएंनेताजी में जो ज़ज्बा था, वो किसी में नहीं था , लेकिन उनकी कुर्बानोयों को उचित सम्मान नहीं मिला। उस समय भी भ्रष्टाचार ज्यादा था शायद , वरना उनकी देशभक्ति के ज़ज्बे को पूरा सम्मान मिलता। यदि मैं आजादी की लडाई के समय होती तो गर्व के साथ आजाद हिंद फ़ौज में शामिल होती।
जवाब देंहटाएंगांधी जी हर हाल में पं. नेहरू को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे ॥
जवाब देंहटाएंvicharniy aalekh ...
जवाब देंहटाएंनेता जी से अपनी हर का बदला गाँधी ने मरते दम तक लिया..
जवाब देंहटाएंबाद में गाँधी उपनाम इस्तेमाल करने वालों ने नेता जी को ब्रिटेन का अपराधी तक कहा..
गद्दारों की बात क्या कहें..अच्छा हुआ गाँधी को नाथूराम ने मर डाला नहीं तो गाँधी जी कहीं के नहीं रहते नेहरु प्रेम के कारन..
सुन्दर प्रस्तुति आभार..
नमस्कार,
जवाब देंहटाएंमान गये आपको क्या लेख लिखा है, नेताजी के बारे में आपसे आगे ऐसे ही लेख की उम्मीद रहेगी। साथ ही आशुतोष जी की बात भी जोड देना मेरे वाक्य में।
-------- यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
जवाब देंहटाएंआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
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हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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क्या यही सिखाता है इस्लाम...? क्या यही है इस्लाम धर्म
आपने तो बड़ा सुन्दर लेख प्रस्तुत किया.....बधाई.
जवाब देंहटाएं________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
sundar vichar
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