सोमवार, 11 सितंबर 2017

ॐ शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि



भगवान को समर्पित होने पर
सबसे पहिले तो हम जाति विहीन हो जाते हैं,
फिर वर्ण विहीन हो जाते हैं,
घर से भी बेघर हो जाते हैं,
देह की चेतना भी छुट जाती है
और मोक्ष की कामना भी नष्ट हो जाती है
विवाह के बाद कन्या अपनी जाति, गौत्र और वर्ण
सब अपने पति की जाति, गौत्र और वर्ण में मिला देती है
पति की इच्छा ही उसकी इच्छा हो जाती है
वैसे ही भगवान को समर्पित होने के बाद हमारी जाति आदि क्या होंगे ?
भगवान् की जाति क्या है ?
भगवान् का वर्ण क्या है ?
भगवान् का घर कहाँ है ?
हम कौन हैं ?
इन सब प्रश्नों के उत्तर जिज्ञासु लोग सोचें
मेरे लिए तो ये सब महत्वहीन हैं
पर एक बात तो है कि जो कुछ भी परमात्मा का है
सर्वज्ञता, सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमता आदि आदि
उन सब पर हमारा भी जन्मसिद्ध अधिकार है
हम उनसे पृथक नहीं हैं
जो भगवान की जाति है वह ही हमारी जाति है
जो उनका घर है वह ही हमारा घर है
जो उनकी इच्छा है वह ही हमारी इच्छा है
Thou and I art one.
Reveal Thyself unto me.
Make me a perfect child of Thee.
तुम महासागर हो तो मैं जल की एक बूँद हूँ
जो तुम्हारे में मिलकर महासागर ही बन जाती है
तुम एक प्रवाह हो तो मैं एक कण हूँ
जो तुम्हारे में मिलकर विराट प्रवाह बन जाता है
तुम अनंतता हो तो मैं भी अनंत हूँ
तुम सर्वव्यापी हो तो मैं भी सदा तुम्हारे साथ हूँ
जो तुम हो वह ही मैं हूँ मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है
मैं तुम्हारा अमृतपुत्र हूँ, तुम और मैं एक हैं
I am the polestar of my shipwrecked thoughts .....
मैं ध्रुव तारा हूँ मेरे ही विखंडित विचारों का,
मैं पथ-प्रदर्शक हूँ स्वयं के भूले हुए मार्ग का.
मैं अनंत, मेरे विचार अनंत,
मेरी चेतना अनंत और मेरा अस्तित्व अनंत.
मेरा केंद्र है सर्वत्र,
परिधि कहीं भी नहीं.
मेरे उस केंद्र में ही मैं स्वयं को खोजता हूँ,
बस यही मेरा परिचय है.
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ॐ शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि ।। ॐ ॐ ॐ ।।
ॐ शिव ।। ॐ तत्सत् ।। ॐ ॐ ॐ ।।
- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल